आज़ादी की दीवानगी में कभी भारत को बुरा–भला कहने वाले अंग्रेज अफ़सर को थप्पड़ तक मार देने वाले स्वतंत्रता सेनानी इमामुद्दीन का रविवार सुबह 109 वर्ष की आयु में देहांत हो गया।
उनके देहांत पर हिंदुस्तानी बिरादरी द्वारा एक शोक सभा आयोजित की गई जिसमें भारत सरकार द्वारा कबीर पुरस्कार से सम्मानित पत्रकार एवं उनके पुत्र डॉ0 सिराज क़ुरैशी द्वारा उनके बारे में कई संस्मरण साझा किए गये जिनमें अंग्रेज अफ़सर को थप्पड़ मारने वाला संस्मरण काफ़ी रोमांचक था। उन्होंने बताया कि बाबूजी (इमामुद्दीन) को अंग्रेज़ी शासन की पुलिस आज़ादी मिलने तक गिरफ़्तार नहीं कर पाई थी।
स्वतंत्रता सेनानी होने के बावजूद इमामुद्दीन ने सरकार से पेंशन लेने की कोई इच्छा नहीं जताई और ना ही कभी अपनी बहनों की तरह पाकिस्तान जाकर बसने की ख्वाहिश रखी। उनके बारे में बताते हुए डॉ0 क़ुरैशी ने कहा कि उनके पिता का पूरा विश्वास भारत के लोकतंत्र में था जिसका परिचय वे हर चुनाव में वोट देकर देते थे। अंतिम बार उन्होंने इस वर्ष मई में हुए आगरा नगर निगम के चुनाव में वोट दिया था।धार्मिक प्रवृत्ति के इमामुद्दीन रमज़ान माह में इतनी अधिक उम्र होने के बाद भी रोज़े और नमाज़ के पाबंद रहे।
मरहूम इमामुद्दीन अपने पीछे भरा–पूरा परिवार छोड़ गये हैं, जिनमें तीन पुत्र और चार पुत्रियाँ और उनके परिवार शामिल हैं।
शोक सभा में मरहूम इमामुद्दीन से जुड़े अपने संस्मरण रखने वालों में विशाल शर्मा, विजय उपाध्याय, राजकुमार नागरथ आदि शामिल थे।