Namaz on road

Namaz on roadआगरा की इमली वाली मस्जिद एक बार फिर विवाद के केंद्र में आ गई है। कुछ दिन पहले सड़क पर नमाज़ (Namaz on road) पढ़े जाने को लेकर इसी मस्जिद पर हिंदूवादी संगठनों का प्रदर्शन हुआ था जिसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा आदेश भी जारी किया गया था कि सड़क पर कोई भी धार्मिक कार्यक्रम से अगर यातायात बाधित होता है तो इसकी अनुमति नहीं दी जायेगी। अनुमति न होने के बावजूद इस मस्जिद के सामने नमाज़ (Namaz on road) पढ़े जाने को लेकर अब 150 से अधिक लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर गया है।

सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज रोड पर स्थित इमली वाली मस्जिद पर प्रतिवर्ष की भांति तराबीह की नमाज़ पढ़ी जा रही थी जो कि पांच दिन रात 9 बजे से 11 बजे तक होती है। अभी तक स्थानीय दुकानदारों व प्रशासन की सहमति से यह नमाज़ हर साल होती थी लेकिन जब इस मस्जिद के सामने की सड़क पर नमाज (Namaz on road) पढ़े जाने को लेकर हिंदूवादी संगठनों ने आपत्ति उठाई और नमाज़ में विध्न डालते हुए हनुमान चालीसा का पाठ भी करने की बात कही तो जिला प्रशासन ने नमाज़ को लेकर दी गई अनुमति वापस ले ली।

स्थानीय निवासियों के अनुसार अनुमति वापस लिए जाने तक दो दिन की तराबीह नमाज़ हो चुकी थी और सबकी सहमति से यह तय किया गया कि अनुमति न मिलने के कारण पांच दिन की जगह तीन दिन में ही तराबीह पूरी कर ली जाएँ। लेकिन यह एक दिन की तराबीह नमाज़ (Namaz on road) इन नमाज़ियों पर भारी पड़ गई और 150 से अधिक लोगों के खिलाफ थाना एम् एम् गेट में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।

एम् एम् गेट थानाध्यक्ष अवधेश कुमार अवस्थी ने बताया कि सड़क पर तराबीह की नमाज़ (Namaz on road) पढ़ी गई थी जिसके कारण सादक पर यातायात बाधित हुआ, लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा, अनुमति की शर्तों का उल्लंघन हुआ तथा अनुमति रद्द होने के बाद भी नमाज़ पढ़ी गई। इस प्रकरण में तीन नामजद और 150 अन्य को आरोपी बनाया गया है। इसमें मुख्य रूप से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने एवं धारा 144 का उल्लंघन, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान निवारण अधिनियम की धाराएं लगाई गई हैं।

एफआईआर में लिखा गया है कि गढ़ैया हकीमान निवासी इरफ़ान सलीम को दिनांक 2 अप्रैल से 9 अप्रैल तक के लिए रात 8 बजे से 10 बजे तक इमली वाली मस्जिद पर तराबीह नमाज़ (Namaz on road) पढ़ने की अनुमति प्रदान की गई थी। यह अनुमति अपर जिलाधिकारी नगर द्वारा प्रदान की गई थी। आरोप है कि आयोजकों ने निर्देशों का उल्लंघन किया। 4 अप्रैल को अनुमति रद्द कर दी गई थी लेकिन इसके बाद भी नमाज़ पढ़ी गई थी। इस से जनता में धर्म के आधार पर विद्वेष बढ़ाने का कार्य किया गया। थानाध्यक्ष ने बताया कि सम्पूर्ण प्रकरण की विवेचना की जा रही है।

इस सम्पूर्ण प्रकरण की बाबत इमली वाली मस्जिद के प्रबंधक इरफ़ान सलीम एवं उनके समर्थकों का कहना था कि इमली वाली मस्जिद ( गुड़ की मंडी ) में रमज़ान माह में पांच दिन की तराबीह नमाज़ लगभग चालीस साल से पढ़ी जाती रही है। इसमें क्षेत्रीय दुकानदारों का बहुत सहयोग और योगदान भी रहता है। लेकिन इस बार हिंदूवादी संगठन और हिन्दू महासभा के सदस्य संजय जाट के नेतृत्व में नमाज स्थल पर पहुँच कर हनुमान चालीसा का पाठ करने की चेतावनी दी जबकि संजय जाट के साथ कोई क्षेत्रीय निवासी नहीं था। ऐसा प्रतीत होता है कि जिला प्रशासन ने यह कदम हिंदूवादी संगठन के दबाव में आकर उठाया है।

एक क्षेत्रीय दुकानदार का कहना था कि प्रतिवर्ष क्षेत्रीय दुकानदार नमाज़ के समय पुलिस के साथ मिलकर शान्ति व्यवस्था में लगे रहते हैं। 30-40 सालों से 5 दिन की तराबीह नमाज़ (Namaz on road) इमली वाली मस्जिद पर पढ़ी जाती है और जिस समय नमाज़ पढ़ी जाती है, वह आमतौर पर बाजार बंद होने का समय होता है। पहली बार किसी हिंदूवादी संगठन ने इस तरह की आवाज उठाई है जिससे साम्प्रदायिकता रूपी आग भड़के। ऐसा लग रहा है कि आगरा प्रशासन भी ऐसे संगठनों के दबाव में आ रहा है।

सामाजिक कार्यकर्ता समीर का कहना था कि प्रशासन का कर्तव्य होता है कि कानून का पालन कराये, लेकिन साथ ही यह भी कर्तव्य होता है कि शहर में शान्ति और अमन का माहौल बना रहे। ऐसे में आगरा प्रशासन को यह संतुलन कायम रखना चाहिए और सुलहकुल की इस नगरी में साम्प्रदायिकता के विष को फैलने से रोकना चाहिए। यदि सड़क रोक कर धार्मिक कार्यक्रम (Namaz on road) करने पर पाबंदी लगी है, तो यह पाबंदी केवल एक विशेष समुदाय के कार्यक्रमों पर ही न लगे और सभी समुदायों पर बराबर लागू की जाये।

S Qureshi