उत्तर प्रदेश विधानसभा के 2022 में होने वाले चुनाव को लेकर सियासी हवा चलने लगी है। भाजपा किसी भी स्थिति में उत्तर प्रदेश की सत्ता अपने हाथ से जाने नहीं देने के लिए प्रतिदिन व्यूह रचना करती हुई दिखाई दे रही है, जबकि विपक्षी एक मत से यह निश्चय कर बैठे हैं कि 2022 में भाजपा की सत्ता उत्तर प्रदेश में किसी भी स्थिति में नहीं बनने देंगे। इसके लिए स्वयं सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव पूरे उत्तर प्रदेश में भागदौड़ करते हुए दिखाई दे रहे हैं तथा उत्तर प्रदेश के छोटे दलों से हाथ मिलाने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं।
लेकिंन लखीमपुर खीरी प्रकरण ने उत्तर प्रदेश की सियासत में नया समीकरण भी पैदा कर दिया है। इस प्रकरण को लेकर जिस तरह से कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के विरोधी दलों पर बढ़त बनाई है, उसने भाजपा को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है।
यह विचार रखते हुए भारतीय मुस्लिम विकास परिषद् के राष्ट्रीय अध्यक्ष समी आगाई ने कहा कि अगर उत्तर प्रदेश के मुस्लिम वोटों और उनकी सोच की तरफ निगाह दौड़ाई जाए तो पूर्व में दिखाई दे रहा था कि 60 – 70 प्रतिशर मुस्लिमों का झुकाव अखिलेश यादव की कार्यपद्धति को देखते हुए समाजवादी पार्टी की ओर दिखाई दे रहा था।
लेकिन जिस तरह का कदम कांग्रेस पार्टी और उसके वरिष्ठ नेता प्रियंका गाँधी, राहुल गाँधी और पंजाब के मुख्यमंत्री चन्नी एवं अन्य साथियों को लेकर उठाया है, उसकी हर व्यक्ति तारीफ करता सुनाई दे रहा है, तथा भाजपा के साथ – साथ विपक्षी साथियों का भी सियासी समीकरण बिगाड़ दिया है। साथ ही जो कांग्रेस पार्टी लखीमपुर खीरी प्रकरण से पहले हाशिये पर पड़ी थी और सियासी तौर पर उत्तर प्रदेश में अप्रासंगिक हो चली थी, वो एकाएक प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल के रूप में आ खड़ी हुई है। इसको देखते हुए असदुद्दीन ओवैसी, शिवपाल सिंह यादव और ओमप्रकाश राजभर जैसे नेतागण भी नए सिरे से सियासी ताना बाना बुनने में लगते हुए दिखाई देने लगे हैं।
उधर समाजवादी पार्टी ने किसी बड़े दल से कोई गठबंधन न करने और छोटे दलों को साथ लेने की सोच बना रखी है। इसी सन्दर्भ में सामाजिक कार्यकर्ता समीर का यह कहना भी उचित लगा कि बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती पहले ही यह कह चुकी हैं कि उत्तर प्रदेश में बसपा अपने अकेले दम पर ही चुनाव लड़ेगी। मायावती ने इसी सोच को दृष्टिगत रखते हुए अपने साथी सतीश मिश्रा को बसपा के पक्ष में लाने हेतु लगाया हुआ है और मिश्रा हर जिले में घुमते हुए ब्राह्मणों के बीच जा कर सभाएं भी कर रहे हैं। मायावती का सोच है कि दलित वर्ग तो बसपा के साथ है ही जब ब्राह्मण और मुस्लिम का वोट और मिल जाएगा तो उत्तर प्रदेश में बसपा की ही सरकार बनेगी।
समीर ने बताया कि अखिलेश यादव ने किसी बड़े दल से गठबंधन न करने की घोषणा उस समय की थी जब कांग्रेस की वरिष्ठ नेता प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में गठबंधन की संभावनाएं खुले होने की बात कही थी। उस समय उत्तर प्रदेश की सियासी परिस्थितियां दूसरी थीं। अब लखीमपुर खीरी प्रकरण के चलते परिस्थितियां बदल गई हैं।
राजनैतिक विश्लेषक एवं दलित चिंतक राजकुमार नागरथ का मन्ना है कि प्रियंका के तेवरों ने कांग्रेस को गांवों तक चर्चा और सियासी फोकस में ला दिया है। लेकिन यह भी कुछ हद तक सच है कि प्रियंका गाँधी अकेली भाजपा का मुकाबला नहीं कर सकती हैं क्योंकि वर्तमान में भाजपा का कुनबा बड़ा है। केंद्र में भी भाजपा की सरकार है तथा भाजपा के पास वर्तमान में धन की कमी नहीं है।
इस सम्बन्ध में जब ब्रज की जनता से सवाल किये गए तो एक स्वर में ज्यादातर लोगों ने महंगाई और बेरोजगारी से परेशानी बताते हुए कहा कि योगी – मोदी शासन में घरेलू गैस 1000 रुपये और पेट्रोल 100 रुपये / लीटर से ज्यादा हो चूका है। ऐसा तो हमने वोट देते समय सोचा भी नहीं था। वायदा तो यह था कि अच्छे दिन आएंगे, लेकिन जिस दिन से मोदी / योगी ने सत्ता संभाली है, अच्छे दिन बस सपना बनकर ही रह गए हैं। इन परिस्थितियों में तो उत्तर प्रदेश की जनता योगी सरकार को दुबारा चुनने की गलती नहीं करेगी।