आगरा के डॉ भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय में परिणामों और डिग्री आदि मिलने में लेटलतीफी आम है। आये-दिन विद्यार्थियों को अपने परीक्षा परिणाम, मार्कशीट, डिग्री आदि के लिए विश्वविद्यालय परिसर में भटकते देखा जा सकता है। परीक्षा परिणामों को समय से घोषित किये जाने को लेकर कितने ही आदेश शासन और न्यायलय द्वारा दिए जा चुके हैं लेकिन कई दशकों से बिगड़ी विश्वविद्यालय की कार्यप्रणाली में सुधार आने की कोई संभावना नजर नहीं आती।
ऐसा ही एक मामला आगरा के आवास विकास में रहने वाले आनंद शंकर शर्मा का है, जिन्होंने वर्ष 1990 में आंबेडकर विश्वविद्यालय से शोध कार्य किया था, लेकिन 26 साल बाद भी विश्वविद्यालय उनको उपाधि नहीं दे सका। इस दौरान उनकी मौत हो गई। अब लोक अदालत ने विश्वविद्यालय पर दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही जाँच के आदेश दिए हैं।
आनंद शंकर शर्मा ने अपना हक़ पाने के लिए लोक अदालत में प्रार्थना पत्र दिया था और मुकदमे के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई। अब स्थाई लोक अदालत ने जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों का वेतन काटकर मृतक की पत्नी को दो लाख रुपये क्षतिपूर्ति अदा करने के आदेश दिए हैं।
आवास विकास कॉलोनी के सेक्टर आठ निवासी आनंद शंकर शर्मा ने वर्ष 2018 में स्थायी लोक अदालत में मुकदमा प्रस्तुत किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय आगरा ( डॉ भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय ) से इतिहास में एम ए किया था। इसके बाद डॉ0 प्रतिमा अस्थाना के निर्देशन में शोध कार्य किया, जिसका विषय वृंदावन के वैष्णव सम्प्रदायों का इतिहास था। उन्होंने अपना शोध कार्य 1990 में पूर्ण कर लिया। वर्ष 1991 में उसकी मौखिक परीक्षा भी सम्पन्न हो गई। उपाधि के लिए शुल्क भी जमा कराया। 21 दिसम्बर 1995 में विश्वविद्यालय की कार्य परिषद की बैठक में शोध उपाधि से अलंकृत करने की संस्तुति भी की गई। इसके बावजूद उन्हें शोध उपाधि नहीं दी गई। सात जनवरी 2017 को विश्वविद्यालय के कुलपति एव कुलसचिव के नाम विधिक नोटिस भी प्रेषित किया, लेकिन कोई जवाब नहीं दिया गया, जिसके बाद उन्होंने लोक अदालत में 80 लाख रुपये का वाद दायर किया।
आनंद ने अपनी याचिका में लिखा कि पीएचडी की उपाधि समय से मिल जाती तो उनको किसी उच्च शिक्षण संस्थान में नौकरी मिल जाती लेकिन उपाधि न मिलने के कारण वे पीएचडी करने के बावजूद जीवन भर बेरोजगार रहे। आनंद ने कहा कि विश्वविद्यालय ने उनका मानसिक उत्पीड़न किया है।
लोक अदालत में वाद चलने के दौरान ही कोरोना काल में पिछले वर्ष आनंद की मृत्यु हो गयी, जिसके बाद उनकी पत्नी संगीता ने मुक़दमे की पैरवी की। जब विश्वविद्यालय से नोटिस का कोई भी जवाब नहीं आया तो स्थाई लोक अदालत की बेंच के अध्यक्ष गोपाल कुलश्रेष्ठ और सदस्य नेत्रपाल सिंह व सोनाली सिंह राठौर ने सम्बंधित विश्वविद्यालय अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन से काटकर जुर्माने के तौर पर दो लाख रुपये आनंद की पत्नी को दिए जाने के आदेश जारी कर दिए। इसके साथ ही यह भी आदेश जारी किये किअगर 60 दिनों के अंदर जुर्माना नहीं दिया गया तो जुर्माना राशि पर छह प्रतिशत अतिरिक्त अधिभार लगाया जाएगा।