कुत्ते, या उसके बच्चे एवं बन्दर के काटने को नजरअंदाज करना पिछले कुछ महीनों में आगरा के कई लोगों की मौत का कारण बन चुका है।
आगरा जिला अस्पताल से प्राप्त जानकारी के अनुसार कई लोग जिले में कुत्ते, बिल्ली, बन्दर आदि के काटने के बाद लापरवाही करने के कारण कालकवलित हो चुके हैं। ऐंटी – रेबीज वैक्सीन (ARV) लगवाने की लाइन में लगी ग्रामीण क्षेत्र की महिला कमला देवी ने बताया कि उसके पड़ोस में रहने वाली वासंती देवी के 10 साल के बेटे को एक कुत्ते के बच्चे ने पैर में काट लिया था। थोड़ी सी खरोंच लग गई थी जिसको उन लोगों ने मलहम लगा कर नजरअंदाज कर दिया। थोड़े समय के बाद उस लड़के को रेबीज की बीमारी लग गई। बहुत कोशिश के बाद भी उसे मौत के मुंह में जाने से बचाया न जा सका। कमला देवी ने बताया कि विगत दिवस उन्हें भी एक आवारा कुत्ते ने पैर पर दांत मार दिया था, इसलिए वे जिला अस्पताल में एंटी – रेबीज वैक्सीन लगवाने आयी हैं।
जिला अस्पताल के एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि इस अस्पताल में प्रत्येक माह ऐसे 2 – 3 मरीज अवश्य आते हैं जो कुत्ते, उसके बच्चे, बिल्ली, अथवा बन्दर के काटे या खरोंच मारने को नजरअंदाज करते हैं और रेबीज के शिकार होकर कालकवलित हो जाते हैं। जिला अस्पताल के अधीक्षक डॉ0 ए के अग्रवाल का कहना था कि ARV वार्ड में प्रतिदिन 40 – 50 वायल एंटी – रेबीज वैक्सीन लगाईं जा रही हैं । एक वायल से लगभग 4 मरीजों को टीका लगता है। औसतन प्रतिदिन 180 – 200 मरीजों को एंटी रेबीज वैक्सीन लगाईं जा रही है।
डॉ0 अग्रवाल ने बताया कि स्कूल खुलने के बाद बन्दर और कुत्ता काटे के केस बच्चों में काफी बढ़ गए हैं और प्रतिदिन आने वाले ऐसे केसों में 70 से 80 प्रतिशत तक बच्चों के केस होते हैं। पूछने पर मालूम होता है कि कुत्ते या पिल्ले ने काट लिया या खरोंच मार दी थी और बच्चे ने घर में माँ- बाप को डर की वजह से तब नहीं बताया और अब तकलीफ बढ़ चुकी है क्योंकि रेबीज के लक्षण सामने आ गए हैं।
नगर निगम पशु चिकित्सालय के डॉ0 पृथ्वी सिंह डांगुर का कहना था कि रेबीज पनपने से मरीज में गुस्सा, काटने को दौड़ना, लार आना और पानी से डरना जैसी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। इसे हाइड्रोफोबिया कहते हैं। इससे पहले मरीज अँधेरे में रहता है, चुप रहता है, कोने में बैठना पसंद करता है। कुत्ता काटे के तीन दिन से 12 सप्ताह में ये लक्षण नजर आने लगते हैं। उन्होंने बताया कि कुत्ता, बिल्ली, बन्दर पालने वाले लोगों को एक मांग में दो बार और फिर सालाना बूस्टर डोज़ लगाया जाता है। ऐसे ही जानवर के बच्चे को 21 दिन का होने पर उसे टीका लगना ही चाहिए। एक माह बाद फिर सालाना टीका लगाया जाता है। जानवर पालने वाले लोगों को अपना और जानवर का टीकाकरण अवश्य करवाना चाहिए।
आगरा रेलवे कॉलोनी निवासी सज्जन ने बताया कि एक 11 साल के बच्चे को कुत्ते ने काट लिया था। बच्चे ने डर की वजह से घरवालों को नहीं बताया। धीरे – धीरे परेशानी बढ़ने लगी। लगभग डेढ़ साल इलाज चला, फिर भी बच्चे की मौत हो गयी।
इसी तरह का केस बाह में दिखाई दिया, जहाँ 7 वर्ष की बच्ची को कुत्ते के काट लिया था। CHC पर ARV नहीं मिलने पर परिजनों ने टीका लगवाने में देर कर दी। घटना के 6 – 7 दिन बाद बच्ची की हालत बिगड़ी और मौत हो गई।
सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं लोकस्वर संस्था के अध्यक्ष राजीव गुप्ता ने बताया कि फ्रांस के वैज्ञानिक लुइस पैस्टर ने रेबीज का टीका बनाया था और उनकी पुण्य तिथि पर 28 सितम्बर को इंटरनेशनल रेबीज डे मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि जो लोग कुत्ता आदि पालते हैं, वे रेबीज का टीका अवश्य लगवाएं क्योंकि इस बीमारी से बचाव संभव है लेकिन एक बार हो जाए, तो यह बीमारी लाइलाज और प्राणघातक है।
डॉ0 एस के कालरा ने बताया कि अगर कुत्ता, बिल्ली, बन्दर आदि काटें या खरोंच मार दें तो 24 घंटे से पहले रेबीज का टीका अवश्य लगवाएं तथा कार्बोलिक एसिड वाले साबुन से पानी की की धार के नीचे घाव को साफ़ करें। इसके अलावा टिटनेस का टीका और एंटी रेबीज वैक्सीन पहले, तीसरे, पांचवें, सातवें और ग्यारहवें दिन अवश्य लगवाएं।
सामाजिक कार्यकर्त्ता समीर ने बताया कि पहले नगर निगम की गाडी आवारा कुत्तों – बंदरों आदि को पकड़ने शहर भर में घूमा करती थी, लेकिन अब शहर की सड़कों पर आवारा कुत्तों और छतों पर बंदरों का साम्राज्य स्थापित हो गया है। आये -दिन कुत्ते के काटने और बंदरों से डरकर छतों से गिरकर लोग घायल हो रहे हैं और मर भी रहे हैं लेकिन आगरा प्रशासन सो रहा है। स्वास्थ्य सेवाओं का सारा फोकस इस समय कोरोना पर और नगर निगम का फोकस स्मार्ट सिटी परियोजना पर लगा हुआ है और रोजमर्रा के काम पीछे छूट रहे हैं। जिला प्रशासन और नगर निगम को आवारा जानवरों को रोकना जरूरी है।