भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड की पूर्व राज्यपाल बेबीरानी मौर्या को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपकर बड़ा दांव खेला है। अब सक्रिय राजनीति में लौटने पर उन्हें प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पार्टी के दलित नेता के तौर पर अहम् भूमिका दी जा सकती है। बेबीरानी मौर्या ने कुछ दिन पहले ही राज्यपाल पद से इस्तीफा दिया था।
आगरा की रहने वाली बेबीरानी मौर्या ने अपने राजनितिक करियर की शुरुआत 1995 में आगरा की पहली महिला महापौर बनकर की थी। महापौर का कार्यकाल खत्म होने के बाद वह पार्टी के अनुसूचित मोर्चा की राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रहीं थी। विभिन्न पदों पर काम किया। तीन साल पहले उन्हें उत्तराखंड का राज्यपाल बनाकर भेजा गया था। 8 सितम्बर को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि बेबीरानी मौर्या को पार्टी बड़ी जिम्मेदारी सौंपेगी। अब पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर इस पर मुहर लगा दी। इस तरह बेबीरानी मौर्या एक बार फिर से सक्रिय राजनीति में रह कर संगठन का कामकाज संभालेंगी। वह राज्यपाल रहने के दौरान भी आगरा के सामाजिक संगठनों के कार्यक्रमों में लगातार सक्रिय रहीं थीं।
इससे पहले राजनीतिक गलियारों में चर्चा चल रही थी कि राज्यपाल के पद से इस्तीफ़ा देने के बाद मौर्या को आगरा छावनी विधानसभा सीट से चुनाव लड़वाया जा सकता है, लेकिन एकदम से संगठन में इतना बड़ा पद देकर पार्टी ने उन सारे कयासों पर विराम लगा दिया है। आगरा के कई मौजूदा विधायक ऐसे हैं जिनके बारे में यह तय माना जा रहा है कि उनको पार्टी दोबारा टिकट नहीं देगी। इनमें आगरा ग्रामीण सीट से विधायक हेमलता दिवाकर शामिल हैं, जिनके बारे में आगरा में यह आम चर्चा है कि उनके क्षेत्र की अधिकाँश जनता ने उनको पिछले विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान भी नहीं देखा था और अब भी वह शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से देखी जाती हैं। मोदी लहर में जीतने का लाभ पिछले विधानसभा चुनावों में तो उनको मिल गया था लेकिन इस बार का चुनाव भाजपा के लिए भी थोड़ा मुश्किल होने वाला है तो पार्टी उनको शायद दोबारा टिकट देने की गलती न करे।