नये संसद भवन में पहली बार महिलाओं को उनका हक़ दिलाने हेतु नारी शक्ति वंदन बिल प्रस्तुत हुआ, जिससे ब्रज क्षेत्र की महिलाओं में हर्ष की लहर दौड़ती दिखाई दी, क्योंकि बिल के पास होते ही महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण मिलने की उम्मीद जागृत हो गई है। भविष्य में राजनीतिक क्षेत्र में भी आधी आबादी को उनका उचित प्रतिनिधित्व मिल सकेगा।
इस संबंध में ब्रज क्षेत्र की महिलाओं के जब विचार जानने की कोशिश की गई तो अधिकांश महिलाओं का कहना था कि अभी तक हर सियासी पार्टी के नेताओं ने महिलाओं को उनका हक़ दिलाने के वायदे तो किए लेकिन हक़ीक़त जुदा रही।
अगर आगरा ज़िले की बात करें तो सन् 1952 से 2019 के बीच लोकसभा चुनाव में केवल एक दर्जन ही महिला उम्मीदवार थीं और इनमें से अधिकांश निर्दलीय थीं।
सामाजिक कार्यकर्ता लक्ष्मी देवी ने बताया कि आरक्षण के बिना आज़ादी के बाद से ही आज तक आगरा जैसी महत्वपूर्ण लोकसभा सीट से एक भी महिला सांसद नहीं चुनी जा सकी है। जबकि ज़िले की दूसरी लोकसभा सीट फ़तेहपुर सीकरी से केवल एक महिला सांसद चुनी जा सकी है।
यही स्थिति विधानसभा की भी है, जहां आगरा से केवल सात महिला विधायक ही 1952 से अब तक चुनी जा सकी हैं। सन् 2022 के विचानसभा चुनाव में आगरा की नौ विधानसभा सीटों में से केवल दो पर ही महिला विधायक चुनी जा सकीं, जबकि आरक्षण लागू हो जाने पर कम से कम तीन महिला विधायक तो अवश्य चुनी जायेंगीं।
आगरा लोकसभा क्षेत्र से 1952 से कोई महिला सांसद नहीं बन सकी हैं लेकिन 2009 में परिसीमन के बाद ज़िले में जब फ़तेहपुर सीकरी लोकसभा सीट बनी, उस समय बसपा सुप्रीमो मायावती ने श्रीमती सीमा उपाध्याय को बसपा की टिकट पर चुनाव लड़वाया। वे दो बार के सांसद राजबब्बर को हरा कर लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद बन कर संसद भवन पहुँचीं।
वर्ष 1952 से लगातार तीन चुनावों तक किसी भी दल ने आगरा से महिला उम्मीदवार को टिकट तक नहीं दिया। पहली बार 1967 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ ने हीरो रानी को चुनावी मैदान में उतारा लेकिन वह कांग्रेस के सेठ अचल सिंह से हार गई थीं।
देश में 1952, 1957, 1962, 1971, 1977, 1980, 1989, 1991, 1999, और 2004 के लोकसभा चुनावों में आगरा से एक भी महिला प्रत्याशी नहीं उतरी। सभी लोकसभा चुनावों में कुल 327 पुरुष और केवल 13 महिला प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतर चुकी हैं। हाँ महिला विधायक अवश्य बनी हैं। वर्तमान में बाह क्षेत्र से श्रीमती पाकशालिका सिंह विधायक हैं। अब तक तीन बार बाह और दो – दो बार फ़तेहपुर सीकरी और ग्रामीण सीट से भी महिलायें विधायक बन चुकी हैं।
पश्चिम पूरी निवासी श्रीमती तृप्ति मदान का कहना था कि 33 प्रतिशत आरक्षण बिल को मंज़ूरी एक ऐतिहासिक कदम होगा और इससे महिला वर्ग को बहुत बल मिलेगा, क्योंकि अब सभी सियासी दलों की मजबूरी होगी कि महिला को टिकट अवश्य दें।
इसी संदर्भ में श्रीमती सरोज रानी का कहना था कि अब एक तिहाई भागीदारी सुनिश्चित कर कैबिनेट ने देश को सभी महिलाओं को गर्व करने के साथ अधिक ज़िम्मेदारी का रास्ता दिया है।
मुस्लिम वर्ग की महिलाओं ने भी इस बिल पर ख़ुशी जताई है। श्रीमती सुल्ताना बेगम का कहना था कि वर्तमान सरकार ने यह साहसिक फ़ैसला लेकर महिलाओं को देश की और सेवा करना का रास्ता सुझाया है, लेकिन अभी यह सिर्फ़ शुरुआत है।
सामाजिक कार्यकर्ता सायरा आमिर का कहना था कि महिला सशक्तिकरण प्रधानमंत्री मोदी की प्राथमिकता में है। इस फ़ैसले ने देश की हर औरत का मान बढ़ा दिया है। अब सरकार की कथनी और करनी के प्रति लोगों का विश्वास भी बढ़ा है।
इस बिल को संसद में पेश किए जाने के समय पर टिप्पणी करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम विकास परिषद के चेयरमैन समी आग़ाई का कहना था कि मोदी जी को देश की सत्ता सम्भाले हुए लगभग दस साल होने जा रहे हैं। इतने समय से उनका ध्यान इस बिल की ओर क्यों नहीं गया, यह एक विचारणीय प्रश्न है। ऐसा लग रहा है कि मोदी जी ने 2024 के लोकसभा चुनाव को दृष्टिगत रखते हुए अधिक से अधिक महिला वोट बटोरने के लिए यह दाँव चला है।