इन दिनों देश का माहौल गर्म है। न सिर्फ तापमान बढ़ा है, बल्कि लोगों के मिजाज़ों का भी पारा बढ़ा हुआ है। महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को अनदेखा करते हुए जनता मंदिर – मस्जिद और लाउड स्पीकर के मसलों को तूल देती नजर आ रही है। ऐसा ही एक मंदिर मुद्दा आगरा के राजा मंडी रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म पर पिछले एक माह से चल रहा है। रेलवे अधिकारियों को स्टेशन के विस्तार के लिए भूमि की आवश्यकता है और ऐसे में दबाव बनाया जा रहा है कि इस स्टेशन पर दशकों से बना हुआ देवी मंदिर (Raja Mandi Temple) अन्यत्र स्थानांतरित कर दिया जाए। इस मुद्दे पर मंदिर के पुजारी और भक्त आंदोलित हो उठे हैं और उन्होंने मंदिर (Raja Mandi Temple) हटाए जाने पर सामूहिक आत्महत्या तक की धमकी दे डाली है जबकि रेलवे अधिकारियों ने स्पष्ट कह दिया है कि अगर यह मसला जल्दी हल नहीं हुआ तो रेलवे राजा मंडी स्टेशन को ही बंद कर देगी। यह तब है जबकि इस स्टेशन पर प्रतिदिन दो दर्जन से अधिक ट्रेनों का आवागमन होता है।
उधर मंदिर पर आने वाले भक्तों और स्थानीय नागरिकों का कहना है कि राजा मंडी स्टेशन पर बना देवी मंदिर (Raja Mandi Temple) रेलवे स्टेशन की भूमि पर अतिक्रमण करके नहीं बना है, बल्कि रेलवे स्टेशन खुद मंदिर के बनने के वर्षों बाद बना था। ऐसे में जो लोग यह प्रचारित कर रहे हैं कि यह मंदिर रेलवे स्टेशन पर अतिक्रमण करके बनाया गया है, वो तथ्यों से परे बात कर रहे हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार 1956 में नए राजा मंडी रेलवे स्टेशन के लिए प्रशासन ने 2.71 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था पर इसमें यहाँ पहले से स्थापित देवी मंदिर (Raja Mandi Temple) की भूमि को छोड़ दिया गया था। हालांकि इससे पहले तत्कालीन राजस्व मंत्री ने लोगों को दूसरी जगह भव्य मंदिर बनाकर देने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन जनता ने एक मत होकर यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था।
एक वरिष्ठ नागरिक ने बताया कि 18 अप्रैल 1954 को इस संबंध में क्षेत्रीय जनता और तत्कालीन राजस्व मंत्री के बीच आगरा के जिलाधिकारी और सिटी मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में बैठक हुई थी जिसमें देवी मंदिर (Raja Mandi Temple) को रेलवे लाइन के पास से शिफ्ट करने के लिए तत्कालीन राजस्व मंत्री ने लोगों को स्टेशन के बाहर जगह देने के साथ भव्य मंदिर बनवाने का प्रस्ताव दिया था लेकिन जनता ने यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया।
इसके बाद 31 जुलाई 1954 को जिला प्रशासन ने रिपोर्ट में कहा था कि रेलवे ने जनता की बात मान ली है कि मंदिर (Raja Mandi Temple) को नहीं छुआ जाएगा और मंदिर को छोड़कर चार फुट रास्ते के साथ बाकी 2.71 एकड़ जमीन का अधिग्रहण करके रेलवे को जमीन दे दी जाए।
राजा मंडी रेलवे स्टेशन के लिए जिला प्रशासन के भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने दो जगह की जमीन अधिग्रहीत की। इसमें चक (1) की 2.30 एकड़ और 0.41 एकड़ सरजेपुर की थी। रिकार्ड के अनुसार इनमें आबादी, कृषि और खाली जमीन का अधिग्रहण किया गया था। उस समय राजस्व मंत्री भी लोगों की आस्था को देखने के बाद मंदिर (Raja Mandi Temple) को स्टेशन परिसर से हटाए जाने का प्रस्ताव खारिज कर गए थे, लेकिन रेलवे ने आम सहमति से मंदिर को स्थानांतरित कराने के प्रयास स्टेशन बनने के बाद भी जारी रखे।
एक अन्य बुजुर्ग के अनुसार नए राजा मंडी स्टेशन के लिए जिस जमीन का अधिग्रहण किया गया उसमें हर प्लॉट, मकान, मजार आदि का ब्यौरा दिया हुआ है, लेकिन मंदिर को शामिल नहीं किया गया है। अधिग्रहण वाले सभी भूमि स्वामियों को मुआवजा भी ददिया गया था, जबकि देवी मंदिर की भूमि पर विनिमय किया गया। 1952 से शुरू हुई भूमि अधिग्रहण की प्रकिया में गोकुल पूरा की तरफ की जमीन के लिए तीन रूपये प्रति वर्ग गज और किदवई पार्क की ओर की जमीन के लिए 4 रुपये प्रति वर्ग गज का मुआवजा दिया गया था।
आगरा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट के प्रशासक आई सी एम अधिकारी एम ए कुरैशी से बॉम्बे विक्टोरिया टर्मिनस स्थित चीफ इंजीनियर सेन्ट्रल रेलवे ने 8 रुपये प्रति वर्ग गज के भाव से रेलवे स्टेशन के पास की 100 वर्ग गज की पट्टी मांगी थी, जिसके लिए आगरा इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट ने इंकार कर दिया था।
इस सन्दर्भ में हिंदुस्तानी बिरादरी के उपाध्यक्ष विशाल शर्मा ने बताया कि इस मंदिर (Raja Mandi Temple) प्रकरण को रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों व शहर के गणमान्य लोगों को बीच में आकर स्थानीय निवासियों की आस्था को ध्यान में रखते हुए जल्द हल करना चाहिए क्योंकि यह प्रकरण उलझता जा रहा है, जिससे शहर की शान्ति और कानून व्यवस्था में खलल पड़ सकता है।