रमज़ान के तीस रोज़े पूरे होने के बाद आज ईद उल फितर (Eid) का त्यौहार आगरा में खुशियों के साथ मनाया गया। हज़ारों मुस्लिम अपने बच्चों के साथ नए – नए लिबासों में मस्जिदों की ओर ईद की नमाज़ अता करने के लिए प्रातः से ही जाते दिखाई दिए।
सबसे पहले ईदगाह पर शहर मुफ़्ती अब्दुल क़ुद्दूस खुबैब रूमी ने प्रातः 7 बजे नमाज़ अता करवाई। उसके बाद 7:30 बजे शाही जामा मस्जिद में इमाम इरफ़ान उल्ला खान निजामी ने ईद (Eid) की नमाज़ अता कराई।
शहर मुफ़्ती आगरा और इमाम शाही जामा मस्जिद आगरा ने देश की खुशहाली और अमन चैन की दुआ करते हुए अवाम से कहा कि इस बार जुमा अलविदा और ईद (Eid) पर शासन प्रशासन द्वारा दी गई गाइड लाइन का पालन करके मुस्लिमों ने बधाई का कार्य किया है।
बताते चलें कि शासन – प्रशासन ने जुमा अलविदा और ईद उल फितर पर रोड पर नमाज अता करने पर पाबंदी लगाई हुई थी जिसका पालन पूरी तरह से किया गया। इमाम इरफ़ान खान ने अवाम से कहा कि इस्लाम मजहब किसी को दुःख देना या परेशान करना नहीं सिखाता है। पूर्व में जब मुस्लिम वर्ग के लोग रोड पर नमाज अता करते थे तो वह इसलिए कि मस्जिदों में जगह कम पड़ती थी, लेकिन इस बार प्रशासन के आदेशों का पालन करते हुए लोगों ने अपने मोहल्लों की मस्जिदों में नमाज अता की। इसका परिणाम यह भी देखने को मिला कि पहली बार जुमा अलविदा की नमाज पर शाही जामा मस्जिद में भी जगह खाली रह गई।
दो साल तक कोरोना महामारी ने ईद की खुशियां छीन ली थीं। जब कोरोना कमजोर पड़ा तो इस बार ईद की खुशियां पुनः वापस लौट आईं। इस मौके पर हिंदुस्तानी बिरादरी के अध्यक्ष एवं भारत सरकार द्वारा कबीर पुरूस्कार से सम्मानित डॉ0 सिराज कुरैशी ने अवाम को ईद की मुबारकबाद देते हुए कहा कि हिन्दू और मुस्लिम लोगों ने आपस में गले मिलकर एक दूसरे को ईद की बधाई देते हुए साम्प्रदायिकता रुपी विष की खाई पाट दी।
सामाजिक कार्यकर्त्ता ज़िआउद्दीन का कहना था कि आगरा सुलहकुल की नगरी है। यहाँ से सदैव सांप्रदायिक एकता और भाई चारे का सन्देश जाता है। आशा है कि भविष्य में भी इसी तरह सांप्रदायिक सद्भाव बना रहेगा।