अंग्रेजी कवि विलियम वर्ड्सवर्थ की कविता है जिसका हिंदी तर्जुमा है – “हवा को न तुमने देखा है, न मैंने, पर जब लटकती हुई पत्तियां हिलती हैं तो उनके पास से गुजरती हुई हवा देखी जा सकती है।” आगरा के सीमान्त कस्बे फतेहपुर सीकरी के एक निवासी ने एक दिन ऐसी ही हवा महसूस की, और बना डाला हवा से चलने वाला इंजन।
चाय बेचने और साइकिल की मरम्मत करने वाले पांचवीं तक पढ़े फतेहपुर सीकरी (आगरा) निवासी त्रिलोकी प्रसाद ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर जिस इंजन का निर्माण किया है वह हवा की ताकत से चलता है।
त्रिलोकी ने बताया है कि उसकी तकनीक का प्रयोग करके अगर इंजन को कार में फिट करने लायक बना लिया जाए तो प्रदूषण के एक बड़े भाग से चुटकियों में छुटकारा मिल जाएगा। त्रिलोकी के अनुसार इस तकनीक से बने इंजन से दो पहिया वहां से लेकर ट्रेन तक चलाई जा सकती है। केवल इंजन को गाडी की जरूरत के अनुसार बदलना होगा।
त्रिलोकी ने बताया कि यह मेरी 15 साल की मेहनत का नतीजा है। 50 वर्षीय त्रिलोकी ने युवा अवस्था में ही ट्यूबवेल का इंजन बनाना सीख लिया था। 15 साल पहले वो साइकिल के पंचर बनाता था। एक दिन हवा के टैंक से पंचर ट्यूब में हवा भरते समय टैंक का वाल्व लीक हो गया तब हवा के दबाव से टैंक का इंजन उल्टा चलने लगा। हवा की ताकत देखकर त्रिलोकी के मन में विचार आया कि हवा से मशीन चलाई जाए तो खर्च कम आएगा।
त्रिलोकी के साथी संतोष चाहर ने बताया कि सभी मित्रों में केवल वही ग्रेजुएट है, बाकि सब ने दसवीं कक्षा तक भी पढाई नहीं की है। टीम ने मशीन में इंसान के फेंफड़े की डिज़ाइन के दो पंप बनाये और मशीन में लगा दिए। एक लीवर घुमाकर हवा का प्रेशर बनाकर इंजन स्टार्ट किया जिसके बाद इंजन ने फेंफड़ों की तरह हवा खींचना और फेंकना शुरू कर दिया।
संतोष ने बताया कि इस इंजन को लिस्टर इंजन की बॉडी पर बनाया गया है, जिसके पुर्जों के घर्षण को कम करने के लिए मोबिल आयल की जरुरत पड़ती है, हालांकि पेट्रोल – डीजल के इंजन की तरह इसमें मोबिल आयल न गर्म होता है और न काला पड़ता है।
त्रिलोकी के अनुसार उसने विरासत में मिला हुआ मकान और खेत बेचकर यह मशीन बनाई है। वर्ष 2019 में इन मित्रों ने मिलकर दिल्लीं में बौद्ध विकास निगम के पास पेटेंट के लिए आवेदन किया, लेकिन तब यह इंजन स्टार्ट नहीं हो पाया था, जिसे आखिरकार दिवाली पर स्टार्ट करने में त्रिलोकी की टीम को कामयाबी मिल गयी। अब सरकार इस गैर-प्रदूषणकारी इंजन के आगे के विकास में कितनी रूचि लेती है, यह देखने की बात है।