ब्रज की राजधानी में संतों और साधुओं को बड़ी संख्या में भोजन कराने और उनके साथ स्वयं भी करने की सियासत शुरू हो गई है। ज्यादातर राजनैतिक पार्टियों की निगाह 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर लगी है। बसपा, सपा और कांग्रेस चाहती हैं कि योगी सरकार को किसी भी तरह बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए।
विगत माह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वृन्दावन (मथुरा) पधार कर लगभग 500 संत – महंतों के साथ भोजन कर 2022 के चुनाव का बिगुल बजाया था शायद उसी को दृष्टिगत रखते हुए बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय सचिव सतीश चंद्र मिश्रा ने मथुरा पधारकर आह्वान किया है कि वृन्दावन में 1000 संतों और साधुओं को कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर भोजन कराएँगे और उनके साथ वह स्वयं, अपनी टीम के साथ भोजन करेंगे। इस कार्यक्रम में संतों का सम्मान भी किया जायेगा।
बसपा का यह कार्यक्रम वृन्दावन में 19 नवम्बर को होने जा रहा है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि ज्यादातर सियासी पार्टियों का एजेंडा “हिंदुत्व” ही बन गया है। बसपा ने इस कार्यक्रम हेतु मथुरा के राधा निवास स्थित आश्रम को चुना है।
एक प्रश्न के उत्तर में बसपा महासचिव सतीश मिश्रा ने बताया कि वृन्दावन से हमारा पुराना लगाव है। प्रदेश में सन 2007 से 2021 तक बसपा सरकार रही। उस समय वृन्दावन के संतों की मांग पर उनकी सरकार ने 300 करोड़ रूपये की योजनाओं की सौगात दी थी।
हिंदुस्तानी बिरादरी के उपाध्यक्ष विशाल शर्मा के अनुसार संतों, साधुओं, फकीरों, उलेमाओं को भोजन कराना और उनके साथ भोजन ग्रहण करना पुण्य की बात है लेकिन ऐसे कार्यक्रम को अगर सियासी पार्टियां अपना एजेंडा बनाती हैं तो ऐसा उचित नहीं है।
शर्मा ने कहा कि सियासी पार्टियों को अपना चुनावी एजेंडा विकास तक ही सीमित रखना चाहिए तथा पार्टी के मुखियाओं को ब्रज प्रदेश के हर जिले में पधार कर बताना चाहिए कि अगर वे 2022 के चुनाव में जीत कर अपनी सरकार बनाते हैं तो यहाँ की जनता की गरीबी, परेशानियों एवं व्यापार को बढ़ावा देने के लिए उनके पास क्या योजनाएं हैं। उन्हें यह बताना होगा कि सत्ता संभालने के बाद जनता को वह कैसे राहत पहुंचाएंगे। वर्तमान में आम जनता को सिर्फ इस बात से मतलब है कि उनके क्षेत्र का विकास कैसे होगा और महंगाई से कब राहत मिलेगी। संतों और साधुओं को भोजन कराने या उनके साथ स्वयं भोजन करके आप अपने लिए पुण्य बटोर सकते हैं पर इससे जनता को क्या मिलेगा?
सामजिक कार्यकर्ता समीर का कहना था कि देश / प्रदेश की जनता वर्तमान में धर्मगुरुओं के आह्वान पर वोट देने की परम्परा से बहुत दूर जा चुकी है। एक समय था कि जनता धर्मगुरुओं की एक आवाज पर उनके कहे उम्मीदवार को वोट दे आती थी लेकिन समय के साथ जनता में भी बदलाव आया है और अब वह इन धर्मगुरुओं की बात तो सुन लेती है, लेकिन वोट उसी को देती है जिसको देने का वह स्वयं निश्चय करती है।