Priyanka Gandhi Lakhimpur

Priyanka Gandhi Lakhimpurकांग्रेस की वरिष्ठ नेता श्रीमती प्रियंका गाँधी वाड्रा के आह्वान पर देश भर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा सोमवार को केंद्रीय गृह राजयमंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ के इस्तीफे की मांग को लेकर किया गया राष्ट्रव्यापी मौनव्रत अवश्य ही रंग ला सकता है।

आगरा के बुद्धिजीवी वर्ग का यह मानना है कि मौन व्रत पर बैठे कोंग्रेसियों का किसानों द्वारा साथ देना बाजी पलट सकता है। अभी तक किसान वर्ग यही कहता आया था कि हम किसी सियासी पार्टी का साथ न लेंगे और न ही साथ देंगे, लेकिन लखीमपुर खीरी प्रकरण सीधे तौर पर किसानों की ह्त्या से जुड़ा होने के कारण यह न सिर्फ मिश्रा परिवार के लिए, बल्कि भाजपा के उत्तर प्रदेश में सियासी समीकरणों के लिए भी हानिकारक सिद्ध हो सकता है।

2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को दृष्टिगत रखते हुए इस प्रकरण को लेकर भाजपा हाई कमान में चिंतन और मंथन शुरू हो गया है। केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा की गाडी से किसानों को कुचले जाने का मामला आपराधिक से कहीं अधिक सियासी मुद्दा बन गया है। समझौता हो जाने के बावजूद किसान वर्ग भी केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के इस्तीफे पर अड़ गया है। ऐसे में जनता में बन रही धारणा के मद्देनजर भाजपा हाईकमान अजय मिश्रा पर जल्द ही कोई फैसला ले सकता है।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि अगर यह साबित हो जाता है कि आशीष मिश्रा वह गाडी नहीं चला रहा था जिससे किसान कुचले गए तब उसके खिलाफ कोई संगीन आपराधिक मामला नहीं बनता। लेकिन मौका – ए – वारदात पर उसकी मौजूगी के सबूतों से स्थिति बदल रही है। हालांकि अगर वह उस गाड़ी में मौजूद भी था और चला नहीं रहा था तो उसके खिलाफ ह्त्या का मुकदमा साबित नहीं होता। ऐसे में आपराधिक साजिश के आरोप शायद साबित न हो सकें।

फिर भी भाजपा हाई कमान को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कोई न कोई कदम उठाना पड़ सकता है। अगर उच्चतम न्यायलय कोई विपरीत निर्णय लेता है तो भी भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। लखीमपुर खीरी प्रकरण में कांग्रेस के कदम का भले ही खुद कांग्रेस कोई लाभ न उठा पाए, लेकिन यह भाजपा की प्रदेश में पकड़ कमजोर करने के लिए काफी होगा, जिसका फायदा उठाने के लिए सपा और बसपा तैयार हैं। कुछ लोगों का कहना था कि प्रियंका ने उत्तर प्रदेश में मृतप्राय कांग्रेस में दुबारा जान फूंक दी है, लेकिन प्रियंका की यह मेहनत आगामी चुनावों में कितने वोट बटोर पाएगी, यह कहना मुश्किल है।

S Qureshi