Babyrani Mauryaआगरा की पहली महिला मेयर बेबीरानी मौर्य ने जब पद संभाला तो अधिकतर लोगों को इसलिए आश्चर्य हुआ था कि दलित वर्ग की महिला पहली बार आगरा के मेयर की कुर्सी पर आसीन हो रही थी।

पांच साल तक सबका ह्रदय जीतते हुए उन्होंने बखूबी इस मेयर पद को निभाया। उसके बाद शायद आगरा के दिग्गज भाजपा नेताओं को उनकी लोकप्रियता अपने लिए खतरा महसूस होने लगी और उनके राजनीति में आगे बढ़ने के सारे रास्ते बंद कर दिए गए। लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए, यह कहा नहीं जा सकता।

केवल आगरा की जनता को ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश की जनता और भाजपा के दिग्गजों को उस समय आश्चर्य हुआ जब भाजपा की केंद्र सरकार ने अचानक बेबीरानी मौर्य को उत्तराखंड की राज्यपाल बनाने का निर्णय कर लिया। उत्तराखंड की राज्यपाल बनने के बाद भी बेबीरानी में कोई घमंड दिखाई नहीं दिया और जब भी वे आगरा पधारीं तब उन्होंने अपने शुभचिंतकों को देहरादून आने की दावत भी दी।

बताया जाता है कि राज्यपाल पद से इस्तीफ़ा देने से पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से कई चरणों में गहरी वार्तालाप भी हुई थी। शायद उसी वार्तालाप के दौरान ही इस्तीफे का निर्णय और सक्रिय राजनीति में आने का निर्णय श्रीमति मौर्या ने लिया होगा। हाँ इतना अवश्य है कि बेबीरानी मौर्य के अचानक इस्तीफ़ा देने से सियासी गलियारों में हलचल अवश्य पैदा ही गयी है। कयास यही लगाया जा रहा है कि उन्हें अनुसूचित जाति बहुल आगरा जिले की किसी सीट से चुनाव में उतारा जा सकता है।

आगरा के छावनी क्षेत्र में रहने वाली बेबीरानी मौर्य राज्यपाल बनने से पहले केंद्रीय बाल आयोग की सदस्य भी रही थीं। उत्तराखंड की राज्यपाल बनने के बाद भी बेबीरानी का सम्बन्ध लगातार तीन साल तक आगरा की जनता से बराबर बना रहा और वह सदैव आगरा के सामजिक कार्यक्रमों में आती रहीं।

सूत्रों ने बताया कि 2022 के उत्तर प्रदेश चुनावों में बेबीरानी को आगरा ग्रामीण सीट से हेमलता दिवाकर के स्थान पर उतारा जा सकता है। हेमलता दिवाकर का इस सीट पर पांच वर्ष तक विधायक के रूप में कार्यकाल जनता की कसौटी पर किसी भी तरह खरा नहीं उतरा है और भाजपा संगठन में उनकी जगह किसी और प्रत्याशी को उतारने पर काफी समय से विमर्श चल रहा था।

यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि बेबीरानी को राज्य स्तर पर सांगठनिक कार्यों की अहम् जिम्मेदारी दी जा सकती है। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि बेबीरानी को चुनाव के दौरान स्टार प्रचारक की कमान भी दी जा सकती है।

एक वरिष्ठ राजनैतिक विश्लेषक ने बताया कि भाजपा से जुड़ने के बाद बेबीरानी मौर्य 1995 में आगरा की पहली महिला मेयर बनी थीं। इसके बाद भी वह भाजपा में सक्रिय रूप से काम करती रहीं सन 2007 में वह एत्मादपुर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ीं, लेकिन जीत न सकीं। उसके बाद वह राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य बनाई गयीं। फिर भाजपा के अनुसूचित मोर्चा में राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी दे दी गई। बेबीरानी लगातार भाजपा में सक्रिय रहीं और इसी सक्रियता का इनाम था कि उन्हें उत्तराखंड की राज्यपाल बनाया गया।

कांग्रेस के शहर अध्यक्ष देवेंद्र चिल्लू ने भाजपा पर कटाक्ष करते हुए बताया कि बेबीरानी को गवर्नर पद से इस्तीफ़ा दिलाकर भाजपा हाई कमान इन्हें फिर सक्रिय राजनीति में लाना चाह रही है। अगर पूर्व राज्यपाल सक्रिय राजनीति में आ भी जाति हैं तब भी कुछ नहीं हो सकता क्योंकि प्रदेश की जनता पूरी तरह मन बना चुकी है कि प्रदेश से योगी सरकार और भाजपा को उखाड़ फेंकना है। बेबीरानी अब भाजपा में कोई नई जान नहीं डाल सकतीं।

सपा के शहर उपाध्यक्ष रिजवान का कहना था कि प्रदेश की जनता अब पुनः अखिलेश यादव को ही मुखयमंत्री के रूप में देखना चाहती है। भाजपा ने बेबीरानी से इस्तीफ़ा दिलाकर अनुसूचित वर्ग के साथ अन्याय किया है, इसलिए अब यह वर्ग भी सपा की सरकार चाहने लगा है। बेबीरानी पूरी कुशलता के साथ उत्तराखंड की राज्यपाल की जिम्मेदारी संभाले हुई थीं। वहां की जनता और सरकार को भी बेबीरानी से कोई शिकायत नहीं थी लेकिन फिर भी भाजपा हाई कमान ने उनसे इस्तीफ़ा ले लिए जो कि अनुचित है। भाजपा को इस का खामियाजा 2022 के चुनाव में भुगतना पड़ेगा।

 

S Qureshi