black yamuna behind the taj

Yamuna - Tajmahalताजमहल विश्व की सबसे खूबसूरत इमारत मानी जाती है। इसका दीदार करने के लिए विश्व के हर कोने से प्रतिदिन हजारों लोग पधारते हैं लेकिन विश्व की सबसे खूबसूरत इमारत को ताज के पीछे बह रही सबसे प्रदूषित कालिंदी (यमुना) न सिर्फ ताजमहल, बल्कि पूरे आगरा और उत्तर प्रदेश की छवि धूमिल कर रही है और शासन – प्रशासन इस ओर से पूरी तरह आँखें बंद किये हुए हैं।

इस यमुना नदी में भारी गंदगी की वजह से ही इसका पानी काला दिखाई देने लगा है। इसका मुख्य कारण बताया जाता है कि आगरा के प्रमुख नालों का गंदा पानी सीधा यमुना में  गिरता है। सीवर और औद्योगिक कचरे से भरे हुए इस पानी की उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जाँच की। बोर्ड की रिपोर्ट बताती है कि यमुना नदी आगरा में प्रवेश के स्थल कैयाश घात से ताजमहल तक पहुँचते पहुँचते तीन गुना ज्यादा प्रदूषित हो रही है।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अफसर ने बताया कि दयालबाग और मंटोला के बीच शहर के लगभग 91 बड़े नाले और लगभग 350 छोटे नाले यमुना के जल को जहरीला बना रहे हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार सीवर नेटवर्क और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट पर सरकार के लगभग 48 करोड़ रुपये प्रति वर्ष खर्च होने के बाद भी यह नाले बिना टैप किये हुए यमुना में गिर रहे हैं।

black yamuna behind the taj

हिंदुस्तानी बिरादरी के उपाध्यक्ष विशाल शर्मा ने बताया की मानसून के तीन महीनों में भी यमुना में प्रदूषण की स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आया है। वर्तमान में यमुना नदी का पानी पीने लायक तो है ही नहीं, साथ ही सिंचाई और नहाने के उपयोग में भी आने लायक नहीं है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार आगरा जिले में यमुना, चम्बल सहित नदियों की कुल लम्बाई 500 किमी से अधिक है लेकिन पीने के शुद्ध पानी के लिए आगरा में 130 किमी दूर बुलन्दशहर के पालड़ा फॉल से गंगाजल लाना पड़ रहा है। सपा संस्थापक समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में वर्ष 2004 में शुरू हुई गंगाजल परियोजना को पूरा होते होते डेढ़ दशक का समय लग गया और स्थानीय विधायक योगेंद्र उपाध्याय के प्रयासों से आखिरकार गंगाजल आगरा तो आ गया, लेकिन इसके शहर भर में वितरण हेतु पाइप लाइन बिछाने का काम अभी चल ही रहा है। गंगाजल को आगरा तक लाने में लगभग 2900 करोड़ रुपये का खर्च आया है और अभी हज़ार करोड़ से ऊपर का खर्च और होने का अनुमान है ताकि हर आगरावासी तक गंगाजल पहुँच सके।

आगरा की नदियों का अध्ययन कर रहे बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डेवलपमेंट सोसाइटी के चीफ डॉ0 के पी सिंह का कहना है कि आगरा से लुप्त हो रही नदियों में सन 1990 तक भरपूर पानी रहता था। वर्तमान में केवल चम्बल नदी ही देखे देती है जिसमें वर्ष-पर्यन्त पानी रहता है। करबन, खारी, उटंगन, किवाड़, पार्वती नदियों का तो अस्तित्व ही खतरे में आ चुका है। करबन नदी हाथरस के औद्योगिक अपशिष्ट लेकर झरना नाले के नाम से यमुना नदी में मिलती है। इसमें रसायनों का झाग भी भरा रहता है। karwan river

सामजिक कार्यकर्ता एवं आगरा के जल आंदोलन के प्रमुख सदस्य राजीव सक्सेना ने बताया कि आगरा में नदियों को पुनर्जीवित कर पानी का प्रबंधन होना बाहर जरूरी है। इससे पूरे साल तक पानी मिलता रहेगा। चेक डैम बनाकर उटंगन, किवाड़,  खारी नदियों में पानी रोका जा सकता है।

इसी सन्दर्भ में जलाधिकार फाउंडेशन के अनुराग शर्मा का कहना था कि जनता को फिर से नदी के किनारे लाने के प्रयास होने चाहिए। आज लोग नदियों से दूर हो गए हैं। अगर वह फिर से नदियों से जुड़ेंगे तो इनकी दुर्दशा देखकर सुधार का प्रयास भी करेंगे।

बायोडायवर्सिटी रिसर्च एंड डेवलपमेंट सोसाइटी के चीफ डॉ0 के पी सिंह का कहना था कि राष्ट्रीय नदी आयोग की स्थापना कर नदियों कि संरक्षण और बहाव की नीति तैयार की जाए। सामजिक कार्यकर्ता विजय उपाध्याय का कहना था कि विश्व पटल पर आगरा, उत्तर प्रदेश और भारत की छवि को धूमिल होने से बचाना है तो यमुना का साफ़ होने जरूरी है।

S Qureshi