जन्म लेने से पूर्व ही, मनुष्य का ध्वनि से सहज संबंध स्थापित हो जाता है। यह संबंध मृत्युपर्यन्त जारी रहता है। मनुष्य के सामान्य अनुभव से, यह सर्वविदित है कि, गर्भस्थ शिशु भी विविध ध्वनियों को सुनकर प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। जब यही ध्वनि निर्दिष्ट लय, ताल के साथ, अनुभूतियों को व्यक्त कर रस उत्पन्न करे, तो उसे संगीत कहते हैं। मानव मन सदा से ही संगीत की ओर आकृष्ट होता रहा है। संगीत, मनुष्य को क्लांति से विश्रांति की ओर ले जाती है। संगीत ने मनुष्य की चेतना को उर्ध्वगामी बनाया है। हिंदुस्तानी संगीत के राग हो या पाश्चात्य संगीत की अलग-अलग धाराएं, सभी मनुष्य जीवन के विविध भावों को साज से साधती हैं। संगीत के प्रति प्रेम देखते हुए, विश्व भर में संगीत प्रेमियों के लिए एक दिन निर्धारित किया गया। प्रतिवर्ष 21 जून को विश्व संगीत दिवस मनाया जाता है। आइये, जानें कि कैसे इस दिन की शुरुआत हुई और बात करें संगीत के उन पहलुओं पर , जिन्होंने मनुष्य के अन्तरबाह्य जीवन को सर्वाधिक प्रभावित किया है।
यूं हुई संगीत दिवस की शुरुआत
संगीत दिवस मनाने की घोषणा वर्ष 1982 में फ्रांस में हुई। यह दिन विश्व के सभी संगीतकारों और संगीत प्रेमियों को समर्पित है। विश्व संगीत दिवस को ‘फेटेडे ला म्यूजिक’ के नाम से भी जाना जाता है। इसका अर्थ संगीत उत्सव है। फेटेडे ला म्यूजिक के दिन, दुनिया भर में अलग-अलग संगीत कार्यक्रम आयोजित होते हैं। कलाकारों को एक मंच पर लाना भी संगीत दिवस का उद्देश्य है। विश्व के कुल 17 देशों में संगीत दिवस मनाया जाता है। इन 17 देशों में भारत, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, लक्समबर्ग, जर्मनी,ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड, चीन, लेबनान, कोस्टारिका, फिलीपींस, मोरक्को, मलेशिया, रोमानिया, कोलंबिया और पाकिस्तान सम्मिलित है।
भारत में संगीत का प्रादुर्भाव
भारतीय संगीत का प्रारंभ वैदिक काल से भी पूर्व का माना जाता है। परंपरागत मान्यता है कि, ब्रह्मा ने नारद मुनि को संगीत की शिक्षा दी थी। वाग्देवी यानि कि सरस्वती माता भी संगीत की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं। भारतीय संगीत को तीन भागों में वर्गीकृत करते हैं, शास्त्रीय, उपशास्त्रीय और सुगम संगीत। भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो प्रकार प्रचलित है; प्रथम कर्नाटक संगीत और दूसरा हिन्दुस्तानी संगीत। भारतीय शास्त्रीय संगीत में कुल सात स्वर है, जिन्हें सप्तक कहा जाता है। सप्तक में, षड्ज,ऋषभ,गंधार,मध्यम,पंचम,धैवत और निषाद सम्मिलित हैं। इन्हें ही सा, रे, ग,म,प,ध, नि, कहा जाता है। कर्नाटक संगीत में भक्ति रस का पुट अधिक है। उपशास्त्रीय संगीत में ठुमरी, होरी,दादरा, कजरी और चैती आदि आते हैं। वहीं, सुगम संगीत में फिल्मी गीत,गजल और भजन आते हैं। भारत समेत समूचे विश्व में भारतीय संगीत अत्यधिक लोकप्रिय है।
संगीत के प्रसार में आकाशवाणी की भूमिका
भारत में संगीत के प्रसार और कलाकारों को मंच प्रदान करने में, आकाशवाणी ने सर्वोत्कृष्ट भूमिका निभाई है। ऑल इंडिया रेडियो ने अपनी स्थापना के बाद से ही कलाकारों को आमंत्रित कर, उनके कार्यक्रम प्रसारित करना प्रारंभ किया। रेडियो के आगमन से पहले संगीत की प्रस्तुति एक जगह तक सीमित थी और उसे कुछ श्रोता ही सुन सकते थे। रेडियो ने संगीत की सीमाओं को लांघ कर, उसे जन-जन तक पहुंचाया। वर्ष 1952 में “शास्त्रीय संगीत का राष्ट्रीय कार्यक्रम” , आकाशवाणी के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में से एक था। आकाशवाणी में समय-समय पर संगीत सभा का आयोजन और संगीत कलाकारों का साक्षात्कार कार्यक्रम भी प्रदर्शित किया जाता रहा है। वर्ष 1962 में दिल्ली में आकाशवाणी वाद्यवृंद की स्थापना की गई। इसमें लगभग 27 वाद्यों का सम्मिश्रण था। स्थापना से ही संगीत के प्रसार में संलग्न आकाशवाणी, वर्तमान में भी तत्परता से इस क्षेत्र में कार्य कर रही है। वर्ष 2016 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर, चौबीस घंटे शास्त्रीय संगीत को समर्पित चैनल रागम की शुरुआत की गई। आज संगीत प्रेमी इस चैनल के माध्यम से संगीत का आनंद लेते हैं। लोक संगीत और सुगम संगीत से संबंधित विविध कार्यक्रम भी रेडियो से प्रसारित किए जाते रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि, संगीत के चतुर्दिक प्रसार में आकाशवाणी ने महती भूमिका का निर्वाह किया है और अभी भी कर रही है।
व्याधियों से मुक्त कर रही संगीत
संगीत मनोरंजन का ही माध्यम नहीं है। संगीतकारों के लिए साधना है, तो वहीं श्रोताओं के लिए सुंदर अनुभूति करने का माध्यम है। यह व्यक्ति शारीरिक और मानसिक व्याधियों से मुक्त करने में भी बेहद लाभकारी है।पार्किंसन और अवसाद के मरीजों में भी वाद्य यंत्रों से उत्पन्न तरंगों का अद्भुत प्रभाव देखने को मिलता। इसे वाइब्रोएकोस्टिक थैरेपी कहते हैं। इसमें अलग-अलग आवृत्ति पर, संगीत ध्वनि से तरंग उत्पन्न किया जाता है और इसे सीधे मरीज को सुनाया व महसूस कराया जाता है। संगीत को किसी भी तरीके से जीवन में अपनाने से तनाव में कमी आती है। तनावमुक्त होना, शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए आवश्यक है। संगीत शरीर में रक्त संचरण को बेहतर बनाता है। संगीत के जानकारों के अनुसार, हृदय रोग में राग सारंग सुनने से लाभ होता है। अनिद्रा से पीड़ित होने पर बांसुरी वादन और राग सोहनी सुनना कारगर है।
इस तरह संगीत, जीवन के हर क्षेत्र पर अपना प्रभाव डालती है। शास्त्रीय और पाश्चात्य संगीत तो सुने ही, पर प्रकृति का संगीत भी हमें सुनना चाहिए। संगीत जो चिड़ियों की चहचहाहट में है, संगीत जो पत्तियों के हिलने में है, संगीत जो वायु और जल के प्रवाहित होने में है और संगीत जो हमारी प्राणवायु में है। संगीत दिवस पर, यही प्रयास हो कि, प्रकृति के कण-कण से निकल रही संगीत की धारा, मनुष्य के अन्तःकरण में प्रवाहित हो और समूचा विश्व मानवीय मूल्यों से ओत-प्रोत हो जाए।